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[18+] Final Girl 2010 720p BluRay 600MB

Full Movie Name: [18+] Final Girl 2010 720p BluRay 600MB
Movie Info: IMDb
Rating: 3.6/10 from 163
Genres: Drama | Erotic
Country: USA
Language: French
Release Date: 31 May 2014 (Netherlands)
Director: Todd Verow
Writer: Todd Verow (screenwriter)
Stars: Wendy Delorme, Véronique Lindenberg, Judy Minx
Duration: 80 Minutes
Size: 638 MB

Storyline

Three Parisian women discover that their lives are delicately interconnected to a mysterious fourth woman, who remains tantalizingly out of reach.
Review: This is an incredibly strange movie. A girl goes to work as a stripper in Paris. She needs a place to stay and finds a girl whose roommate has just left. She convinces her new roommate to waive the rent deposit by tying her up and having lesbian sex with her. Later she becomes interested in the girl who just left–especially, when the roommate tells her she “left” by jumping out the window of the high-rise apartment. She reads a journal the woman left behind, which cues a lot of black-and-white flashbacks and voice-over narration of the dead woman. Interspersed with this are more color scenes of the stripper having more lesbian sexual encounters including one with a woman who comes to the door looking for the dead girl. . .
The lesbian sex in this obscure French film kind of resembles the lesbian sex in the more famous French film “La Vie d’Adele” (“Blue is the Warmest Color”) what with girls masturbating other from behind and spanking each other. Many American lesbians–who apparently speak for ALL lesbians–have claimed that that movie does not “realistically” portray lesbian sex, so perhaps this one doesn’t either. But speaking for all (more or less) heterosexual men, I don’t think these scenes are exactly meant to appeal to them either. The sex scenes are few and far between and kind of abbreviated. They somehow manage to be both graphic (bordering on hardcore) and strangely oblique. The girls range from marginally attractive to downright ugly (although it’s only the marginally attractive ones that have graphic sex scenes). They, at least, don’t have the fake breast/”sexy Frankenstein” look of most American porn stars, but are more pierced and tattooed “suicide girl” types.
Final Girl 2010 SCreen
Final Girl 2010 720p BluRay 600MB Screenshot

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Final Girl 2010 Watch online
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18+The Vampire Sex Diaries 2010 XxX DVDRip 100MB

18+The Vampire Sex Diaries 2010 XxX DVDRip 100MB

http://i2.wp.com/i.imgur.com/FAzFlDU.jpg?resize=618%2C1005Genres: Adult | Fantasy
Country: USA
Language: English
Release Date: 5 February 2010 (USA)Director: Gary Dean Orona
Writer: Gary Dean Orona (screenplay)
Stars: Cheyne Collins, Ally Kay, Jay Lassiter

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बारिश में भीगी साली को सेड्युस किया – पार्ट 2

दोस्तों, ये मेरी sali ki chudai की कहानी का आखिरी भाग, मुझे यकीं है आप ये पूरी कहानी पढके बहुत बार मुठ मरी होगी और झड़ी होंगी| यही मेरा इनाम है, प्लीज कमेंट करके बताइए कि यह hindi sexy kahani कैसी लगी आपको..
पहले भाग का लिंक- बारिश में भीगी साली को सेड्युस किया – पार्ट 1
सपना अब पूरी तरह से गरम हो चुकी थी। उसके मन में कशमकश चल रही थी कि आगे बढ़े या नहीं। मैं जानता हूँ पहली बार की चुदाई से सभी डरतीं हैं। और वो तो अभी अनछुई कुँवारी कली थी। पर मेरा कार्यक्रम बिल्कुल सम्पूर्ण था। मेरे चुंगल से वो भला कैसे निकल सकती थी। उसने आँखें बन्द कर रखीं थीं।
फिर धीरे से बोली “बस एक बार ही देखना है और कोई शैतानी नहीं समझे?”
“ठीक है बस एक बार एक मिनट और २० सेकेण्ड के लिए, ओके, पक्का… प्रॉमिस… सच्ची…” मैंने अपने कान पकड़ लिए। उसकी हँसी निकल गई।
दोस्तों मेरे कार्यक्रम का तीसरा और अन्तिम चरण पूरा हो गया था। मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। कमोबेश यही हालत निसा की भी थी। उसने काँपती आवाज़ में कहा “अच्छा पहले लाईट बन्द करो, मुझे शर्म आती है।”
ओह… अँधेरे में क्या दिखाई देगा? और फिर वो जंगली बिल्ली आ गई तो?”
“ओह.. जीजू.. .तुम भी…” इस बार उसने एक नम्बर का बदमाश नहीं कहा। और फिर उसने आँखें बन्द किए हुए ही काँपते हाथों से अपना टॉप थोड़ा सा उठा दिया…
उफ्फ… सिन्दूरी आमों जैसे दो रस-कूप मेरे सामने थे। ऐरोला कोई कैरम की गोटी जितना गुलाबी रंग का। घुण्डियाँ बिल्कुल तने हुए चने के दाने जितने। मैं तो बस मंत्रमुग्ध हो देखता ही रह गया। मुझे लगा जैसे रिया ही मेरे सामने बैठी है। उसके रस-कूप रिया से थोड़े ही बड़े थे पर थोड़े से नीचे झुके, जबकि मुक्की के बिल्कुल सुडौल थे. मैंने एक हाथ से हौले से उन्हें छू दिया। उफ्फ… क्या मुलायम नाज़ुक रेशमी अहसास था। जैसे ही मैंने उनपर अपनी जीभ रखी तो निसा की एक मीठी सी सीत्कार निकल गई।
“ओह जीजू… केवल देखने की बात हुई थी… ओह… ओह… यहा… अब… बस करो… मुझे से नहीं रुका जाएगा…” मैंने एक अमृत कलश पर जीभ रख दी और उसे चूसना चालू कर दिया। सपना की सीत्कार अब भी चालू थी। “ओह… जी… जू…. मुझे क्या कर दिया तुमने… ओह.. चोदो मुझे… आह। हाआआयय्य्ययय… ऊईईईईईई… माँ…….. आआआहहहह… बस अब ओर नहीं, एक मिनट हो गया है” उसने मेरे सिर के बालों को अपने दोनों हाथों में ज़ोर से पकड़ लिया और अपनी छाती की ओर दबाने लगी। मैं कभी एक उरोज को चूसता, कभी दूसरे को। वो मस्त हुई आँखें बन्द किए मेरे बालों को ज़ोर से खींचती सीत्कार किए जा रही थी। इसी अवस्था में हम कोई ८-१० मिनट तो ज़रूर रहें होंगे। अचानक उसने मेरा सिर पकड़ कर ऊपर उठाया और मेरे होंठों को चूमने लगी, जैसे वो कई जन्मों की प्यासी थी। हम दोनों फ्रेंच किस्स करते रहे। फिर उसने मुझे नीचे ढकेल दिया और मेरे ऊपर लेट कर मेरे होंठ चूसने लगी। मेरा पप्पू तो अकड़ कर कुतुबमीनार बना पाजामे में अपना सिर फोड़ रहा था। मैं उसकी पीठ और नितम्बों पर हाथ फेर रहा था। क्या मुलायम दो ख़रबूज़े जैसे नितम्ब, कि किसी नामर्द का भी लंड खड़ा कर दे। मैंने उसकी गहरी होती खाई में अपनी उँगलियाँ फिरानी शुरु कर दी। उसकी चूत से रिसते कामरस से गीली उसकी चूत और गाँड का स्पर्श तो ऐसा था जैसे मैं स्वर्ग में ही पहुँच गया हूँ।
कोई ५ मिनट तक तो उसने मेरे होंठ चूसे ही होंगे। वैसे ही जैसे उस ब्लैक फॉक्स ने उस १५-१६ साल के लड़के के चूसे थे। फिर वो थोड़ी सी उठी और मेरे सीने पर ३-४ मुक्के लगा दिए। और बोली “जीजू तुमने आख़िर मुझे ख़राब कर ही दिया ना!”
मैंने धीरे से कहा “ख़राब नहीं प्यार करना सिखाया है”
“जीजू तुम एक नम्बर के बदमाश हो”
मैंने अपने मन में कहा ‘मेरी रानी मैं एक नम्बर का नहीं दो नम्बर का भी बदमाश हूँ, थोड़ी देर बाद पता चलेगा’ पर मैंने कहा “अरे छोड़ो इन बातों को जवानी के मज़ा लो, इस रात को यादगार रात बनाओ”
“नहीं जीजू, यह ठीक नहीं होगा। मैं अभी तक कुँवारी हूँ। मैंने पहले किसी के साथ कुछ नहीं किया। मुझे डर लग रहा है कोई गड़बड़ हो गई तो?”
“अरे मेरी रानी अब इतनी दूर आ ही गए हैं तो डर कैसा तुम तो बेकार डर रही हो, सभी मज़ा लेते हैं। इस जवानी को इतना क्यों दफ़ना रही हो। अपने मन और दिल से पूछो वो क्या कहता है।” मैंने अपना राम-बाण चला दिया। मैं जानता था वो पूरी तरह तैयार है पर पहली बार है इसलिए डर रही है। मन में हिचकिचाहट है। मेरे थोड़े से उकसावे पर वह चुदाई के लिए तैयार हो जाएगी। चूत और दिल इसके बस में अब कहाँ हैं, वो तो कब के मेरे हो चुके हैं। बस ये जो दिमाग में थोड़ा सा खलल है, मना कर रहा है। मेरी परियोजना का अन्तिम भाग सफलता पूर्वक पूरा हो गया था। अब तो बस उत्पाद का उदघाटन करना था।
मैंने उसका टॉप उतार दिया। दोनों क़बूतर आज़ाद हो गए। वो आँखें बन्द करके लेटी थी। होंठ काँप रहे थे। मैंने अभी तक उसकी चूत को हाथ भी नहीं लगाया था। आप तो जानते हैं मैं प्रेम गुरु हूँ और जल्दीबाज़ी में विश्वास नहीं रखता हूँ। मैं तो उसके मुँह से कहलवाना चाहता था कि ‘मुझे चोदो’। अब मैंने उसके होठों पर उसके होंठ रख दिए। उसके नरम नाज़ुक रसीले होठ नहीं जैसे शहद से भरी फूलों की पँखुड़ियाँ हों। मैंने उसे गालों पर, पलकों पर, माथे पर, गले पर, कान पर, दोनों उरोजों पर, और नाभी पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। वो आआहहह… उहहहह… करती जा रही थी। अपने पैर पटक रही थी। उसकी सीत्कार तेज़ होती जा रही थी। वो बोली “ये मुझे क्या होता जा रहा है…” वो रोमांच से काँप रही थी। मैं जानता था अब वह झड़ने वाली है। अरे वो तो बिल्कुल कच्ची कली ही निकली। उसका शरीर अकड़ा और उसने मेरे होंठ ही काट लिए। उसके नाखून मेरी पीठ पर चुभ रहे थे। उसने एक हल्की सी सिसकारी मारी। लगता है उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। फिर वह ठंडी पड़ गई।

परी कहना भी तौहीन है..
मैंने अपने कपड़े उतार दिए। सिर्फ चड्डी पहनी रखी। पप्पू महाराज ने अपना सिर चिपकी हुई चड्डी से भी बाहर निकाल ही लिया। उस बेचारे के क्या दोष था। अब सपना की बेल-बॉटम हटाने का वक्त आ गया था। सपना आँखें बन्द किए लेटी थी। मैंने उसकी सैलेक्स (सूती के पाजामे जैसी) के इलास्टिक को धीरे-धीरे नीचे करना शुरु किया। (उसने फिर बत्ती बन्द करने को कहा, तो मैंने कहा कि वो जंगली बिल्ली आ गई तो तुम्हारा दूध पी जाएगी और मैं भूखा ही रह जाऊँगा, रहने दो।) सपना ने अपने चूतड़ थोड़े से ऊपर कर दिए। प्यारे पाठकों, और पाठिकाओं ! अब तो स्वर्ग का द्वार बस एक दो इंच ही रह गया था। चूत का अनावरण होने ही वाला था। मेरा पप्पू तो ठुमके पर ठुमका लगा रहा था। उसने तीन-चार वीर्य की पहली बूँदें छोड़ ही दीं। वो तो इस स्वर्ग के द्वार के दर्शन के लिए कब से बेताब़ था।पहले छोटे-छोटे रेशमी बाल (उन्हें झाँट तो कतई नहीं कहा जा सकता) नज़र आए, और फिर किशमिश का दाना और फिर दो भागों में बँटी हुई उसकी नाज़ुक सी मक्खन मलाई सी चूत की फाँकें। गुलाबी रंगत लिए हुए। चूत के दोनों होठों पर हल्के-हल्के बाल। बीच में हल्की चॉकलेटी रंग की मोटी सी दरार। चीरे की लम्बाई ३ इंच से ज़्यादा बिल्कुल नहीं थी। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, ऊपर और नीचे के होंठों में रत्ती फर भी फ़र्क नहीं था। मोटे-मोटे गुलाबी रंग के संतरे की फाँके हों जैसे। दाईं जाँघ पर वो काला तिल। जैसे मेरे कत्ल का पूरा इन्तज़ाम किए हो। उसकी चूत काम-रस से सराबोर नीम गीली थी। मैंने अपने हाथों की दोनों उँगलियों से उसकी चूत की दोनों पंखुड़ियों को धीरे से चौड़ा किया। एक हल्की सी ‘पट’ की आवाज़ के साथ एक गहरा सा चीरा खुल गया।
उफ्फ.. सुर्ख लाल पकौड़े जैसी चूत एक दम गुलाबी रंग की थी। ऊपर अनार दाना, उसके नीचे मूत्र-छिद्र माचिस की तीली की नोक जितना बड़ा। आईला… और उसका फिंच… स्स्स्सी… का सिस्कारा तो कमाल का होगा। एक बार मूतते हुए ज़रूर चुम्मा लूँगा. मूत्र-छिद्र के ठीक एक इंच नीचे स्वर्ग-गुफ़ा का छोदा सा बन्द द्वार जिसमें से हल्का-हल्का सा सफेद पानी झर रहा था। मैंने अपनी जीभ जैसी ही उसकी मदन-मणि के दाने पर रखी तो उसकी एक सीत्कार निकल गई। मैंने जीभ को उसके मूत्र-छिद्र पर फिराया और फिर उसके स्वर्ग-द्वार पर। कच्चे नारियल, पेशाब और पसीने जैसी मादक सुगन्ध मेरे नथुनों में भर गई। कुछ मीठा, खट्टा, नमकीन सा स्वाद भला मैं कैसे नहीं पहचानता, जैसे रिया ही मेरे सामने लेटी हो। सपना तो अब किलकारियाँ मारने लगी थी। उसने अपने नितम्ब ऊपर-नीचे उठाते हुए अपनी चूत मेरे मुँह से चिपका दीं। मेरे सिर को दोनों हाथों से ज़ोर से पकड़ लिया और ज़ोर से बाल नोच लिए। इसमें उस बेचारी का क्या दोष। मुझे लगा अगर यही हालत रही तो मैं जल्दी ही गंजा हो जाऊँगा। पर अगर ऐसी चूत के लिए गंजा भी होना पड़े तो कोई ग़म नहीं।
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बारिश में भीगी साली को सेड्युस किया – पार्ट 1

दोस्तों, ये कहानी है बरसात की एक रात की| ऐसे रोमांटिक मौसम में भगवान किसी भीगी हुई परी को मेरे दरवाजे पर भेज देते है| आप मेरी इस सुपर हॉट hindi sexy kahani को पढ़िए और जानिए कैसे की मैंने अपनी sali ki chudai..

उस दिन रविवार था। सारे दिन घर पर ही रहा। पहले दिन जो बाज़ार से ब्लू-फिल्मों की ४-५ सीडी लाया था उन्हें कम्प्यूटर में कॉपी किया था। एक-दो फ़िल्में देखी भी, पर रिया (मेरी गर्लफ्रेंड) की याद आते ही मैंने कम्प्यूटर बन्द कर दिया। दिन में गर्मी इतनी ज्यादा कि आग ही बरस रही थी। रात के कोई १० बजे होंगे। अचानक मौसम बदला और ज़ोरों की आँधी के साथ हल्की बारिश शुरु हो गई। हवा के एक ठंडे झोंके ने मुझे जैसे सहला सा दिया। अचानक कॉलबेल बजी और लगभग दरवाज़ा पीटते हुए कोई बोला, “दीदीऽऽऽ !! … जीजूऽऽऽ.. !! दरवाज़ा जल्दी खोलो… दीदी…!!!?” किसी लड़की की आवाज थी।
रिया जैसी आवाज़ सुनकर मैं जैसे अपने ख़्यालों से जागा। इस समय कौन आ सकता है? मैंने रुमाल और पैन्टी अपनी जेब में डाली और जैसे ही दरवाज़े की ओर बढ़ा, एक झटके के साथ दरवाज़ा खुला और कोई मुझ से ज़ोर से टकराया। शायद चिटकनी खुली ही रह गई थी, दरवाज़ा पीटने और ज़ोर लगाने के कारण अपने-आप खुल गया और हड़बड़ाहट में वो मुझसे टकरा गई। अगर मैंने उसे बाँहों में नहीं थाम लिया होता तो निश्चित ही नीचे गिर पड़ती। इस आपा-धापी में उसके कंधे से लटका बैग (लैपटॉप वाला) नीचे ही गिर गया। वो चीखती हुई मुझसे ज़ोर से लिपट सी गई। उसके बदन से आती पसीने, बारिश और जवान जिस्म की खुशबू से मेरा तन-मन सब सराबोर होता चला गया। उसके छोटे-छोटे उरोज मेरे सीने से सटे हुए थे। वो रोए जा रही थी। मैं हक्का-बक्का रह गया, कुछ समझ ही नहीं पाया।
कोई २-३ मिनटों के बाद मेरे मुँह से निकला “क्क..कौन… अरे.. स्स्स.. सपना तू…??? क्या बात है… अरे क्या हुआ… तुम इतनी डरी हुई क्यों हो?” ओह ये तो प्रीति की कज़िन सपना थी। कभी-कभार अपने नौकरी के सिलसिले में यहाँ आया करती थी, और रात को यहाँ ठहर जाती थी। पहले मैंने इस चिड़िया पर ध्यान ही नहीं दिया था।
आप ज़रूर सोच रहे होंगे कि इतनी मस्त-हसीन लौण्डिया की ओर मेरा ध्यान पहले क्यों नहीं गया। इसके दो कारण थे। एक तो वो सर्दियों में एक-दो बार जब आई थी तो वह कपड़ों से लदी-फदी थी, दूसरे उसकी आँखें पर मोटा सा चश्मा। आज तो वह कमाल की लग रही थी। उसने कॉन्टैक्ट लेंस लगवा लिए थे। कंधों के ऊपर तक बाल कटे हुए थे। कानों में सोने की पतली बालियाँ। जीन्स पैन्ट में कसे नितम्ब और खुले टॉप से झलकते काँधारी अनार तो क़हर ही ढा रहे थे। साली अपने-आप को झाँसी की शेरनी कहती है पर लगती है नैनीताल या अल्मोड़ा की पहाड़ी बिल्ली।
ओह… सॉरी जीजू… प्रीति दीदी कहाँ हैं?… दीदी… दीदी…” सपना मुझ से परे हटते हुए इधर-उधर देखते हुए बोली।
“ओह दीदी को छोड़ो, पहले यह बताओ तुम इतनी रात गए बारिश में डरी हुई… क्या बात है??”
“वो… वो एक कुत्ता…”
“हाँ-हाँ, क्या हुआ? तुम ठीक हो?”
सपना अभी भी डरी हुई खड़ी थी। उसके मुँह से कुछ नहीं निकल रहा था। मैंने दरवाज़ा बन्द किया और उसका हाथ पकड़ कर सोफ़े पर बिठाया, फिर पूछा, “क्या बात है, तुम रो क्यों रही थीं?”
जब उसकी साँसें कुछ सामान्य हुई तो वह बोली, “दरअसल सारी मुसीबत आज ही आनी थी। पहले तो प्रेज़ेन्टेशन में ही देर हो गई थी, और फिर खाना खाने के चक्कर में ९ बज गए। कार भी आज ही ख़राब होनी थी। बस-स्टैण्ड गई तो आगरा की बस भी छूट गई।” शायद इन दिनों उसकी पोस्टिंग आगरा में थी।
मैं इतना तो जानता था कि वह किसी दवा बनाने वाली कम्पनी में काम करती है और मार्केटिंग के सिलसिले में कई जगह आती-जाती रहती है। पर इस तरह डरे हुए, रोते हुए हड़बड़ा कर आने का कारण मेरी समझ में नहीं आया। मैंने सवालिया निगाहों से उसे देखा तो उसने बताया।
“वास्तव में महाराजा होटल में हमारी कम्पनी का एक प्रेज़ेन्टेशन था। सारे मेडिकल रिप्रेज़ेन्टेटिव आए हुए थे। हमारे दो नये उत्पाद भी लाँच किए गए थे। कॉन्फ्रेन्स ९ बजे खत्म हुई और खाना खाने के चक्कर में देर हो गई। वापस घर जाने का साधन नहीं था। यहाँ आते समय रास्ते में ऑटो ख़राब हो गई। इस बारिश को भी आज ही आना था। रास्ते में आपके घर के सामने कुत्ता सोया था। बेख्याली में मेरा पैर उसके ऊपर पड़ गया और वह इतनी ज़ोर से भौंका कि मैं डर ही गई।” एक साँस में सपना ने सब बता दिया।
“अरे कहीं काट तो नहीं लिया?”
“नहीं काटा तो नहीं…! दीदी दिखाई नहीं दे रही?”
“ओह… प्रीति तो जयपुर गई हुई है, पिछले १० दिनों से !”
“तभी उनका मोबाईल नहीं मिल रहा था।”
“तो मुझे ही कर लिया होता।”
“मेरे पास आपका नम्बर नहीं था।”
“हाँ भई, आप हमारा नम्बर क्यों रखेंगी… हम आपके हैं ही कौन?”
“आप ऐसा क्यों कहते हैं?”
“भई तुम तो दीदी के लिए ही आती हो हमें कौन पूछता है?”
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किसी BOMB से कम नहीं थी वो..
“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।”
“इसका मतलब तुम मेरे लिए भी आती हो।” मैं भला मज़ाक का ऐसा सुनहरा अवसर कैसे छोड़ता। वो शरमा गई। उसने अपनी निगाहें नीची कर लीं। थोड़ी देर कुछ सोचती रही, फिर बोली, “ओह, दीदी तो है नहीं तो मैं किसी होटल में ही ठहर जाती हूँ!”
“क्यों, यहाँ कोई दिक्क़त है?”
“वो… वो… आप अकेले हैं और मैं… मेरा मतलब… दीदी को पता चलेगा तो क्या सोचेगी?”
“क्यों क्या सोचेगी, क्या तुम इससे पहले यहाँ नहीं ठहरी?”
“हाँ पर उस समय दीदी घर थी।”
“क्या हम इतने बुरे हैं?”
“ओह.. वो बात नहीं है।”
“तो फिर क्या बात है?”
“वो.. .वो… मेरा मतलब क्या है कि एक जवान लड़की का इस तरह ग़ैर मर्द के साथ रात में… अकेले?? मेरा मतलब?? वो कुछ समझ नहीं आ रहा।” उसने रोनी सी सूरत बनाते हुए कहा।
“ओह.. अब मैं समझा, तुम मुझे ग़ैर समझती हो या फिर तुम्हें अपने आप पर ही विश्वास नहीं है।”
“नहीं ऐसी बात तो नहीं है।”
“तो फिर बात यह है कि मैं एक हिंसक पशु हूँ, एक गुंडा-बदमाश, मवाली हूँ। तुम जैसी अकेली लड़की को पकड़कर तुम्हें खा ही जाऊँगा या कुछ उल्टा-सीधा कर बैठूँगा? क्यों है ना यही बात?”……………………………………..:
“ओह जीजू, आप भी बात का बतंगड़ बना रहे हैं। मैं तो यह कह रही थी आपको बेकार परेशानी होगी।”
“अरे इसमे परेशानी वाली क्या बात है?”
“फिर भी… मेरा मतलब वो… दीदी…?” वो कुछ सोचते हुए सी बोली।
“अरे जब तुम्हें कोई समस्या नहीं है, मुझे नहीं, तो फिर जयपुर बैठी प्रीति को क्या समस्या हो सकती है। और फिर आस-पड़ोस वाले किसी से कोई फिक्र नहीं करते हैं। अगर अपना मन साफ़ है तो फ़िर किसी का क्या डर? क्या मैं ग़लत कह रहा हूँ?” मैंने कहा। मैं इतना बढ़िया मौक़ा और हाथ में आई मुर्गी को ऐसे ही हवा में कैसे उड़ जाने देता।
मुझे तो लगा जैसे रिया ही मेरे पास सोफ़े पर बैठी है। वही नाक-नक्श, वही रूप-रंग और कद-काठी, वही आवाज़, वही नाज़ुक सा बदन, बिल्कुल छुईमुई सी कच्ची-कली जैसी। बस दोनों में फ़र्क इतना था कि सपना की आँखें काली हैं और रिया की बिल्लौरी थीं। दूसरा सपना कोई २४-२५ की होगी जबकि रिया २२ की थी। रिया थोड़ी सी गदराई हुई लगती थी जबकि सपना दुबली-पतली छरहरी लगती है। कमर तो ऐसी कि दोनों मुट्ठियों में ही समा जाए. छोटे-छोटे रसकूप (उरोज)। होंठ इतने सुर्ख लाल, मोटे-मोटे हैं तो उसके निचले होंठ मेरा मतलब है कि उसकी बुर के होंठ कैसे होंगे। मैं तो सोच कर ही रोमांचित हो उठा। मेरा पप्पू तो छलांगे ही लगाने लगा। उसके होठों के दाहाने (चौड़ाई) तो २.५-३ इंच का ही होगा। हे लिंग महादेव, अगर आज यह चिड़िया फँस गई तो मेरी तो लॉटरी ही लग जाएगी। और अगर ऐसा हो गया तो कल सोमवार को मैं ज़रूर जल और दूध तुम्हें चढ़ाऊँगा। भले ही मुझे कल छुट्टी ही क्यों ना लेनी पड़े। पक्का वादा।
प्रेम आश्रम वाले गुरुजी ने अपने पिछले विशेष प्रवचन में सच ही फ़रमाया था, “ये सब चूतें, गाँड और लंड कामदेव के हाथों की कठपुतलियाँ हैं। कौन सी चूत और गाँड किस लण्ड से, कब, कहाँ, कैसे, कितनी देर चुदेंगी, कोई नहीं जानता।”
“इतने में ज़ोरों की बिजली कड़की और मूसलाधार बारिश शुरु हो गई। सपना डर के मारे मेरी ओर सरक गई। मुझे एक शेर याद आ गया:
लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से !
या इलाही ये घटा दो दिन तो बरसे !!
उसके भींगे बदन की खुशबू से मैं तो मदहोश ही हुआ जा रहा था। गीले कपड़ों में उसका अंग-अंग साफ दिख़ रहा था। शायद उसने मुझे घूरते हुए देख लिया था। वो कुछ सोचते हुए बोली, “मैं तो पूरी ही भीग गई।”
“मैं समझ गया, वो कपड़े बदलना या नहाना चाहती है, पर उसके पास कपड़े नहीं हैं, मेरे से कपड़े माँगते हुए शायद कुछ संकोच कर रही है। मैंने उससे कहा, “कोई बात नहीं, तुम नहा लो, मैं प्रीति की साड़ी निकाल देता हूँ।”
वो फिर सोचने लगी, “पर वो… वो… साड़ी तो मुझे बाँधनी नहीं आती। मैंने मन में कहा, “मेरी जान तुम तो बिना साड़ी-कपड़ों के ही अच्छी लगोगी। तुम्हें कपड़े कौन कमबख़्त पहनाना चाहता है” पर मैंने कहा –
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chitra mavshi-iit screening-part 2

मागच्या कथेमधेय भवभीजला चित्रा मावशीला कसा झवलो ह्याचे वर्णन्ं होते. पुद्ची गोष्ट.

चित्रा मावशीकडे मी आता एक आटवडा राहता गेलो. IIT सक्रीनिंग परीक्षा होई पर्यंत. मी तिच्या घरी आलो. घरी काका, मावशी, आणि ३ मुले असा परिवार. आरती ताई व राजेश दादाचे लग्न झाले होते. घरी फक्त राकेश दादा होता, जो कॉल सेंटर मधेय कामाला होता. काका झिल्ला परिषद माडेय अधिकारी असल्यामुलेय पुनेच्या अवती-भवतीच्या गावांमदेय फिरती वर असत.

मी दुपारी घरी आलो. काका शिरूरला जाण्याच्या त्यारीत होते. माझी खायली-खुशली विचरऊन, ते गेले. राकेश दादा मला बघून खुश झाला. तो म्हणाला, "रोहित, सनडेला फुटबॉल ला जाउ". मावशी म्हणाल जोरात," राकेश, रविवारी त्याची परीक्षा आहे, त्याला अभ्यास करून दे. जो पर्यंत आहे त्याला , माझ्या आणि बाबाच्या रूम मधे राहून दे. तुझा टुक्कार पण नक्को." राकेश दादा , मी आणि मावशी दुपारचे जेवण केले.

संध्याकाळी राकेश दादाची कॅब आली व तो रात्रपाळीला गेला.
आज काय मावशीचा मूड नव्हता, असे वाट्त होते. ती पुर्ण संध्याकाळ मला दुर्लक्ष्य करत होती. मी पण बोर झालो आणि अभ्यासाला लागलो. अभ्यास करता रात्रीचे नउ कधी वाझले लक्ष्यात नाही आले. मावशी ने जेवायला हाक दिली. जेवणा नंतर मे आणी मावशी वॉक ला गेलो.जो काय प्रकार चाला होता, मला असे दिसले की आज काय चान्स नाही. वॉक नंतर मी हॉल मध्ये अभ्यासाला बसलो. मावशी बेडरूम मधे गेली.गणित सोडवून डोक्याची मंडी झाली होती.

रात्रीचे बारा वाजले होते. परीक्षामुळे आदीच गांड फाटली होती. आणि त्यात आई-बाबा चे टेन्षन. iit क्लियर नाही झालो तर घरी बसणारा मार वेगळा होता. मी विचारा मधे गूंग झालो होतो. बेडरूम मधे आलो आणि मावशीच्या बाजूला पडलो. ती चादर घेउन झोपली होती. परीक्षा च्या विचार डोक्यात धिंगाणा घालत होते. एक क्षण मी मावशीच्या स्तन वर हात फिरवला आणि तिचा उजवा स्तन चादरी वरून दाबला. पण आज मला इच्छा होत नव्हती तिला झवण्याची. मी तसाच कूस बदली. iit गणित सेक्षन कसा सोडवायचा , या विचारणे तोडा गर्ग झालो. प्रॅक्टीस झाली होती पण कॉन्फिडेन्स ये नव्हता. फिज़िक्स आणि केमिस्ट्री वर हात बसला होता. विचार च्या तंद्री मधेय मी आपला स्वतशी पुटपुट त्ह बसलो.

"काय रे , कोणाशी बोलतोय" हळूच मावशी कानाजवळ बोली. मी कूस बदली , " काही नाही". मावशी: "आज काय तुला काही गमत कार्याची नाही का ?". "मूड नाही ग आज, गणितामुळे गांड फाटली आहे." मावशी: " तू रिलॅक्स होण्याची गरज आहे." तिने माझी चादर ओडली आणि तिची चादर माझ्या वर टाकली. एक मिट्टी मारली. आश्चर्य ती फक्त ब्लाउस आणि परकर वर होती. तिने आजून जोराने मिट्टी मारू लागली. मी तिला माझ्या आंगावरून सरकवले. चादर बाजूला केली.

डिम लाइट च्य प्रकाशमधेय तिचा हिरवा ब्लाउस आणि पांढरा परकर मधले शरीर कडे कामवसने ने बागू लागलो. तिने माझ्या नजरेचा रॉक पहिला, आणि मंगळसुत्र, इयररिंग आणि बांगड्या कडल्या. माझ्या कडे बागुन कामुक हसू लागली. वेळ न दवडता मी निरवस्त्र झालो. आज तिने मला पाहिले स्वताहून चुंबन दिले. आता आमचे चुंबून क्रीडा सुरु झाली. मी तिची केसची बट मोकळी केली.ती मोठ्या आवेशाने चुंबून घेउ लागली. मी स्तन आदिक्क जोराने दाबू लागलो. स्तन दाबणे जोरात चालू असताना, मी जोरात तिचा ओट चावले. आई..ग..ग.ग ती ओरडली. मी तिच्या अंगावरून उठलो.
आता मावशीला डाव्या अंगावर केले आणि तिला मागून मिट्टी मारली. डावा हात तिच्या कंबर आवळे. माझ डोके तिच्या कानजवळ ठेवले. माझा लवडा तिच्या गांड वर घासू लागलो . बाबुराव चांगलाच कडक झाला. उजव्या हात तिचे दोनही स्तन कूच्करून काडले. मावशी आता चांगलीच तापू लागली. आता मी पाटीवर झालो आणि मावशी तशीच तिच्या पाटीवरून माझ्या अंगा वर ओडले. तिचे भरगच्च नितंब माझ्या लवड्यावर होते. तिची कंबर दोनही हाताने धरली आणि दाबू लागलो. मावशी एकाद्या माश्या सरकी तडफडत होती. ती तिच्या स्टनशी खेळू लागली. एकीकडेह मी तिच्या मानेवर अलगद चावत होतो. आता मी उठलो आणि मावशीला उठवले. तिला माझ्या मांडी वर बसवले आणि स्तन दाबू लागलो. तिने तिचे ब्लाउस चे हुक कडालसुरवात केले, पण मधला हुक अडकला. मी एकदम तिचा ब्लाउस दोनही हात ने पकडला आणि जोरात ओडला. ताकद जरा जास्त लागली आणि तिचा ब्लाउस हुक सकट फाटला. मला चेव आला , मी तिचा ब्लाउस ब्राच्या पट्टी सह खांद्यावरून ओडू लागलो. मावशी मांडीवरून उठली. तिने एक धीर्घ श्वास घेतला आणि ब्लाउस व ब्रा काडला.
हळूच तिने तिचे परकरची नाडी सहील केली आणि माझ्या अंगावर पडली. परत आमची चुंबन क्रीडा सुरु झाली. तिने माझा हात घेतला आणि परकर मधेय डकला. मी तोह पुढे नेहला तर चमत्कार, पुच्छी वरचे केस गायब होते. मी ती पुच्छी कुरवाळू लागलो. मावशी ने आता परकर पूर्ण सोडला, आणि मला माझी बोटे पुच्छी मधे घालायला लावले. माझ्या बोटाचे पुच्छी मधेल मसाज तिला चांगला उत्तेजित करत होते. आता मी एक वरून तीन बोटे आत-बाहेर करू लागलो. मावशी आता पेटली. एकीकडेह चुंबन आणि खाली बोटांचा खेळने ती चांगलीच मस्तावली. आजून जोरात कर असे ती वारंवार बोलू लागली. पन बाबुराव एकदा तापलेला लोखन्ड झाला होता. मी माझा बोटांची पुच्छी तीव्रता वडवली, मावशी आता करहायला लागली. मी हेरले हा आहे मोक्का आहे. आणि मी तिच्या आंगवर झालो, आणि क्षणात माझा लावडा तिच्या पुच्छी मधेय घुसवला. घुसावताना एक जोरात झटका दिला.

आई ग ग ss आशी मावशी ओरडली. पण मी थांबलो नाही , आणि तिला कंबर तोड झवू लागलो. माझा आवेश इतका वाडला की पुढचे मिनिट्स झटके देत राहिलो. ती वेदनाने आणि कामसांवेग ने ओरडू लागलो. मला ही भान राहिले नाही माझा सगळा जोर तिच्या झवण्यात लावला. शेवटी मी तिच्या पुच्छी मधेय विर्य सोडले. शक्तीहीन होऊन तिच्या वर पडलो. ती आजून हुंदके देत होती आणि घट मला आवळे.

दोघेही दमले. ती माझ्या बाबुरावला कुरवाळू लागली. मी हलकेसे तिच्या स्तनाचा चुंबून घेतले. मावशी म्हणाली दमलस का ? आजून तर खेळ बाकी आहे, असे बोलत मला तिने मांड्यामधेय यायला लावले. तिचा उजवा पाय माझ्या खांदायावर टेवला आणि खाली डकले. अता दोन्ही हथने माझे डोके तिने पुच्छीवर ठेवले. चुंबन घ्याला लावले. तिची ओलसर पुच्छी चटणे मला नवीन होते. पण माझ्या चटण्याने ती परत उत्तेजित होऊ लागली. मी आता दोन्ही हाताने तीच कंबर कच्च पकडली आणि पुच्छी चाटू लागलो. अधूनमधून मी चावा घेउ लागलो. एकादी आतमा संचरीत झालेला शरीरप्रमाणे ती पूर्ण पलंग वर आंग झतकु लागली. आता मी माझेय तोंड काडले आणि तिच्या योनीमधे माझी बोटे घातली. आणि चांगलेच रगडु लागलो. अता मावशी वेडी झळी होती. तिची काम उतेजना शिगेला पोचली होती.

माझा बाबुराव परत उसळी मारू लागला. अता मला वेद लागले तिच्या गांडीचे. मागच्या वेळी तिने प्रकर विरोध केला होता. पण ह्या वेळी ती एकदम काममस्त झाली होती. मला ही संधी दवड्याची नव्हती. मी २ मीन उठलो आणि कपट्तून तिचा दुपट्टा कडला. तिचे फारशे लक्ष्य नव्हते. तिला पालटवले. तिच्या पाटीवरून हात फिरवू लागलो. तिच्या कुल्या मधे माझे तोंड घातले आणि मागून तिची पुच्छी चाटू लागलो. तिला मस्त वाटू लागले. आजून आजून असे बोलत मला प्रोत्साहन देत होती. मी एकी कडेह दोन उशी आणि एक मउ रझाई, एक वर एक रचल्या. त्या वर मावशीला पाळती टाकले.

परत तिची पुच्छी चाटू लागलो आणि मधेच पुच्छी मधेय बोटे घालू लागलो. मावशी एकदुम मदमस्त आणि बेभान झाली होती. आता माझा लावडा तिच्या योनी मुखावर रगडात होतो. तिला मज़ा येऊ लागली. मी तिची मोती कुले हाताने फाकवले . आता मी स्वतला तिच्या मागे पोज़िशन घेतली. माझ्या दोन्ही पाया ने तिच्या मांडी आणि पाय लॉक केले. तिला जकडून ठेवले. पुच्छी मधे बोटे आत- बाहेर करत होतो. मावशी कालांतराने दमली होती. हाच फायदा घेत , मी माझा बाबुराव तिच्यागांडीचा भोकावर ठेवला, आणि घुसवू लागला. हा माझा पहिला प्रयत्न होता. मावशीने त्या दमलेल्या अवस्तेत मज़ा गांड मारण्या चा प्रयत्नाला विरोध करू लागली , पण ती पूर्ण लॉक झाली होती. ती उठणार तेवड्यात मी तिला खाली डकले. नको नको रे अशी विनवणी करू लागली. पण ह्यावेळी माझ्यात शक्ती संचरीत झाली होती. पटकन मी तिचये हात माघे ओडले आणि दुपट्ट्याने मुसक्या आवल्या. आता मावशी शक्तीहीन आणि हतबळ झाली.

डिम लिघटच्या प्रकाशात मी तिच्या गांडीच्या भोकावर आता लावडा घुसवू लागलो. जोर लावून पण लावडा काय भोकत जयना. मावशी आंकी कान्ह्याला लागली. आवेशात मी तिच्या कुल्या वर चपट्या दिल्या आणि कंबर परत पोज़िशन मधेय आणली. एक मोटा श्वास घेतला, कुले फकवले आणि लावडा जोर लावून घुसवला. कसबसा लावडा अर्धा गांडीत घुसला. मावशी वेदने ओरडू लागली.. ठरवले की मागार घ्याची नाही. परत जोर लावला, आणि पूर्ण लंड गांडीत गेला. मावशी अशक्य वेदने कान्ह्याला लागली. आता आवेशात मी धक्के देऊ लागलो. प्च प्च प्च आवाज, आई आई आई ची आरोळी. मी माझे पूर्ण वजन टाकून गांडीत झाउ लागलो. तिच्या मुसक्या सोडले. आत मधे एक पिचकारी सोडली. शेवटी सगळी शक्ती एक्टवली आणि दोन पॉवर फुल्ल धक्के दिले. मावशी तिकडेच संपली. लंड आजून ताट होता.

मी माझा लंड गांडीतून काडला. मावशीने उफ्फ करून श्वास सोडला. तिच्या डोक्याखाली उशी दिली. आणि तिला सरळ झोपवले. आज परक्रमने मी खुश होतो. पण आजून झावण्याची इछा होती. मावशी कडेह पाहिले आणि हलकेसे चुंबन दिले व रझाई ओडली. दुसर्या दिवशी गंड मार्ना परक्रमाणे मावशी जरा नाराज होती. पण तिला पण मजा आली. पुद्दचे दिवस मी अभ्यासात गर्ग होतो. परीक्षा झाली आणि त्या दिवशी मावशीला दणक्यान झवलो. कालांतराने iit सक्रीनिंग क्लियर झालो. main एग्ज़ॅम पण दिली. अधून मधून मावशीला झावण्याचा चान्स मिळायचा.

तर पुढच्या वेळी नवीन स्टोरी. तो पर्यंत वाचा आणि कॉमेंट करा !!!!
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चित्रा मावशी, IIT आणि Diwali

चित्रा मावशी, IIT आणि Diwali

 
माझी गोष्ट आहे माझी आणि माझ्या मावशीची. कसा मला एक चान्स मिळाला आणि मी तिला झवलो. मला आहेत 2 मावशी आणि 3 मामा. माझी आई सर्वात शेवट. त्यामुळे सर्वांची लाडकी. आता मेन पॉइण्ट वर येतो. माझा झवण्याचा प्रसंग झाला चित्रा मावशी संगे. मी बारवीत तेव्हा झाला हा प्रसंग.

चित्रा मावशी एक 44-45 वर्षाची बाई . फिगर एक नंबर. आंब्यासारके स्त्न, कलिंगड सरकी गांड आणि जबरदस्त कंबर. तिला 3 मुले. रंग रूपाने ती होती सावळी पण सुबक व नक्षीदार चेहरा. मला कधी तिचे आकर्षण नव्हते किवा तिचा मनात विचार पण नव्हता. पण एक रात्री तिच्या संघे झोपलो आणि मला माझ्या सेक्स ची जाणीव झाली. हा सगळा प्रकार दिवलीच्या भावभीज च्या रात्री झाला.

बारावी असल्या मुळे मी अभ्यासात गर्ग होतो. त्यात इईट ची त्यारी. पूर्वी IITची एग्ज़ॅम दोन स्टेज मध्ये होयची. सक्रीनिंग आणि मेन एग्ज़ॅम. त्यामुळे मी खूप स्ट्रेस मध्ये अस्यचो. सक्रीनिंग पुढच्या आटवड्यात असल्या मुळे दिवाळीचे भान नव्हते. पुस्तक आणि मी, हेच माझे जग.

आई ने सकाळी सांगितले की ममच्या घरी भवबीज ला जाणे आहे. दर वर्षी प्रमाणे सगळे मामा आणि मावशी आणि भावंडे राजू ममच्या घरी जमले. रंगत सोहळा सुरू झाला. सगळे खुश होतेय, फराळ आणि जेवण जोरात चालू होतेय. अभ्यासमुळे मी उशिरा आलो. तो पर्यंत जेवण झाले होतेय सगळयांचे. मी पण जेवण केले. उशीर झाल्यामुळे सगळ्यांनी मुक्काम कार्याचे प्लान केले.
गप्पा मध्ये रात्र रंगली. नंतर झोपचे वेळ झाले. मामा चा फ्लॅट छोटा होता. बेडरूम आणि हॉल फुल्ल झाले. चित्रा मावशीने हॉल आणि बेडरूमची मधली लॉबी मध्ये तिचे अंतरून टाकले. हॉल फुल्ल असल्या मुळे मामी ने मला मावशी जवळ झोपवले. बरेच मंडळी असल्या मुळे तिने आम्हाला सिंगल रझई दिली. आणि अड्जस्ट कर्यला सांगितले.

चित्रा मावशी संगे लहांपणी तिच्या खुशीत झोपलो होतो, पण ते दिवस वेगळे होतेय. मी दमल्यामुळे मला झोपयाचे होते. मी भिंतीला लागून झोपलो आणि मला डोळा लागला. तोड्या वेळाने मावशी भाजूला झोपली. भिंतीला लागून असल्यामुळे मला माझे हालचालीला स्कोप नव्हता. तोडी थंडी असल्यामुळे आणि सिंगल राझई मध्ये मावशी मला बिलगू लागली.

मला जाग आली. मला काही तरी मउ-मउ जाणवले. मी डोळे उगडले तर मावशी एकदम मला चिटकूण होती. तिचे मोट आंबे सारके उरोज माझ्या छाती ला लागले होते. आणि माझा हात तिच्या कंबर वर होता. मला कूस बदल्या ची होती. तिला तोडे सराकवले. कूस बदलून जरा बरे वाटले. तोड्या वेळाने मावशी लागली घोर्याला. त्याने माझी झोप उडाली. मी परत कूस बदली आणि चुकुन तिच्या आंब्या वर हात ठेवून तिला हलवले व तिचे घोरणे थांबले. मी जाणवले की तिचा पदर सरकला होता नुसता ब्लाउस राहिला होता. मला मज़ा वाटली. मी परत तिच्या ब्लाउस वर हात ठेवला. तिच्या स्तणाचे फील ने मी रोमांचित झालो. मनात थोडी भीती पण होती. जरा हिंमत करत डाव्या स्तनावरून उजव्या वर हात सर्कावला. आता बाबूराव पण उसळी घेऊ लागला.

खूप महिने झाले होते अभ्यासामुळे बाबूराव कडे लक्ष्य दिले नव्हते. पण जो प्रकार मी सुरू केला होता बाबूराव एकदम ताट झाला. लॉबी च्या डिम लाइट मध्ये मी मावशी कडे बघू लागलो. मला राहवले नाही आणि परत तिच्या ब्लाउस वर हात फिरवू लागलो. आचनाक मावशी ने कूस बदली, माझा हात तिच्या उजवा स्तनावर होता आणि तो एकदम तिच्या स्तनाखाली आला. दूसर्या क्षणात माझया हातावर तिचा हात आला. रोमांच आणि भीती दोन भावना ने मनात धंगा घातला. आता काय?
हळू हळू मी तिच्या स्तनावर दाब देऊ लागलो. आता माझी हिमत वडली आणि मी तिला बिलगलो . जसा तिला बिलगलो , खाली मला तिचा नितम्ब चा फील येऊ लागला. बाबूराव एकदम उभा. मला राहवले नाही, आणि मी माझा उजवा पाय तिच्या उजवा मांडी वर टाकला. दुसर्या क्षणानत माझी कंबर उचली आणि तिच्या नितम्ब वर तेव्हली. जे फील आला त्याने माझा अंगात एक जोश संचारला. आता मला कसले ही भान नव्हते की हॉल आणि बेडरूम मध्ये लोक झोपली आहेत. मी कमारेतून तिच्या नितम्ब वर जोरात झटका दिला, त्याचवेळी उजवा हाताने तिचे स्त्न डाबलेय आणि मोकळा डावा हातने तिची कंबर उचली. बाबूराव एकदम मग्न झाला. आणि मला एक अनोकी शक्ति संचारित झाल्याचा फील आला.

मावशी एकदम जागी झाले. तिने डोळे उगडले आन् मला जोरात झटका देऊन माझा हात बाजूला केला आणि मला भिंतीकडे ढकले. ती उठली पदर सावरला व पाया वर साडी ओडलि. इकडे तिकडे कानुसा घेतला. माझया कडे पहिले आणि माझया कणखाली लावली. मी स्तभ होतो. राझई अंगावेर् घेतली आणि पडली परत विरूढ दिशेत तोंड करून. मी घाबरलो, वाटले की उद्या सगळ्यां समोर आपला दिवाला निघतो. भिंतीकडे तोंड केले आणि पडलो. झोपल कसली काय, मी उद्या सकाळी होणारे गोष्टी चे वेद लागले.


बराच वेळ गेला. टेन्षन ने मला घाम फुटला. कूस बदलण्याची मला हिमात झाली नाही. डिम लाइट च्या प्रकाशात मे भितीकडे बघत राहिलो. अचानक मावशी ने माझया खांद्या वर हात तेव्हला. तिने मला कूस बदल्या लावली आणि मंद प्रकाशात बघू लागली. मी घाबरलो आणि सॉरी बोलो. तिने मला शुश केले. मी जरा चक्रावलो. तिने माझा उजवा हात घेतला आणि तो तिने तिच्या नितम्ब वर ठेवला. आणि मला खाली ड्कले. मी गांगारलो. एकदम तिने माझे डोके तिच्या स्तनामध्ये ठेवले. तिच्या स्तना मध्ये प्रवेश करता मला स्वर्ग प्राप्ती चा अनुभव झाला. पण मला कुठे माहित हे तर स्वर्गीय सुखाचे सुरवात आहे.


मी क्षणांचा विचार न करता, तिच्या ब्लाउस वर जीभ फिरू लागलो. उजवा हाताने नितम्ब दाबु लागलो. डाव्या हाताने तिची मकमली कंबर जोरात दाबली. मवसीने हळूच फुंकर दिली. मला वाटू लागले ती पण कामातुर झाली. मी तिच्या वक्ष स्थाळहून तोंड काडले आणि तिच्या ओट चे चुंबन घेण्याचे प्रयत्ने केले. पण तिने मला विरोध केला, मी परत प्रयत्ने केले. असफल होऊन मी आदिक उत्तेजित झालो , थोडा जोर लावले आणि तिला पाठीवर पाडले. परत चुंबन घ्याचा प्रयत्न केला. तिने परत मला माघे डकले. मी माझा मोर्चा आता स्तनावर वळवला. उजवा हात नितम्बवरून ब्लाउस वर ठेवला आणि डावा हाताने कंबर भवती माझी पकड आदिक घट केली. उजवा मांडीने तिचे पाय पकडले.

ह्यावेळी सोमयपणे तिचे स्तना दाबू लागलो. तिचे ब्लाउस हुक एक हाती कडण्याच प्रयत्ने केला. मावसी ने जास्त विरोध न करता तिने अलगद पणे हुक कडले आणि ते स्तन मुक्त झाले. आता मी तिचे ब्रा वर करून जोरात दाबू लागलो. जोर इतका वदला की तिने मला जोरात भिंतीकडेह डकले. ती उठली परत आजू बाजू चा कानुसा घेतला, रझाई अंगावर ओडली. मी दोन क्षण श्वास घेतला आणि मग माझे मुख तिचा स्तनाच्या निपल वर लावले आणि स्तन-पान करू लागलो.

स्तनपान नंतेर मी माझी शॉर्ट्स कडली आणि तरवले की आता पुछीची सवारी कार्याची. थोडे वेळ मी मावसीला आलिंगन देऊन पडून राहिलो. बाबुराव आदीच उसळ्या मारत होता, तो एकदम कडक लंड झाला होता. मावशीला मी आता डाव्या अंगा वर केले. तिचा विरोध मावळा होता. हळूच उजवय हाताने तिची साडी फेडण्याचा प्रयत्ना केला, पण परत तिने हात माझा धरला. मी थांबलो, जास्त जबरदस्ती करता एक हाताने स्तन दाबू लागलो आणि माझा लंड तीचया नितम्बवर रगडु लागलो. आता तर मी अंडरवेर पण काडली. ह्यावेळी तिला खाली परकर मध्ये हात घातला आणि साडी वर ओडली. तिची पुढची हालचाल आधी मी माझा लावडा तिच्या गांडीच्या पॅंटी वर ठेवला आणि मागून जोरात मिठी मारली.

आता मावशी चांगलीच माझ्या पकड मध्ये होते. हळू-हळू माझा लावडा मी तिचया पॅंटी वर घासू लागला. आता रागड्याचा स्पीड वाडलआ. आता मी कंबरणे तिच्या गांडि वर धक्के देऊ लागलो. काय तो फील!!!. एक हाताने दाबतोय आणि खाली लावड्याने धक्के देतोय. आवेश इतका वाढला की मावशीच्या पॅंटी वर विर्यची पिचकारी मारली. क्षणात तीच गांड झाली वीर्याने ओली झाली. मावशी आणि मी दोघानी मोठ्याने श्वास घेउ लागलो. थोडा वेळ शांत पडलो. तिने अलगद ची ओली पॅंटी काडली.

मावशी सरळ झोपली, तिला डोळा लागू लागला. मीपण शांत राहिलो. अवतीभवतीचा कानोसा घेतला , हळूच रझाई खाली सरकवली आणि तिच्या स्तनचे दर्शन घेतले. एकदा अलगद कुरवाले. वेळचा काही पता लागत नव्हता. मला काय झोप लागत नव्हती. बाबुराव पण शांत होता. लक्ष्यात आले की पुछी आणि चुंबन घ्याचे राहिले की. ह्या विचारणे बाबुराव उसळी मारू लागला परत.

ह्या वेळी मी जरा थांबलो , मावशी परत घोरु लागली. हळूच परत तिची साडी वर करू लागो. ह्या वेळी प्रयास सोपे होते. साडी कंबर वर आली. हाताने मांडी व पुछीचा अंदाज घेतला. परत थांबलो, आता तिचे पाय हळू हळू फाकू लागलो. योनी-मुख वर हात फिरवू लागलो. काय ते केस ही केस. !! जंगल मध्ये बोट घातले. ठरवले की डाइरेक्ट सवारी करायची. पाय चांगले फाकले होते. मी उठलो हॉल आणि बेडरूमच्या दिशयात पाहिले. ऑल क्लियर !!! अलगदपणे मी मावशीच्या दोन्ही पायात शिरलो आणि माझे लिंग तिच्या योनी मार्गा वर ठेवले. तिला माझे वजन जाणवले. दमल्यामुळे आणि डोळ्यावरची झोपमुळे तिने प्रतिकार केला नाही. दोन्ही हात पाठीवर टाकले. वेळ न घालवता मी डाव्या हाताने माझा लंड तिचा पुछित गुसवला. अद्भुत अनुभव होता तोह. पण तोह पुढे जात नव्हता. इतक्यात उजवा आणि डावा कंबर वर ठेवला आणि एक जोरात dhakka.... आई ..ग .. मावशी ने ..करवली.. मी इकडेतिकडे पाहिले , पटकन चुंबन दिले. दुसरा धक्का द्याचा आधी .. मी लगेच तिच्या दोन्ही मनगट पकडले. माझे तोंड तिच्या तोंडात लॉक केले. दुसरा धक्का... उम्म्म्ह !!! उम्म्ह्ह! उम्ह्ह !!! धक्का वर धक्का...!! आणि मी पण तिच्या पुछिमध्ये विर्याची एक पिचकारी सोडली. आता मी तिचे मनगट सोडले. लगेच तिच्या अंगावरून सरकलो. तिच्यामध्ये शक्ती नव्हते ... तिचा परकर खाली केला.. मोठे श्वास घेत होतो. लंड आजून ताट होता. मावशी शक्तीहीन पडली होती, तिला तिचा डाव्या अंगावर केले आणि तिची साडीवर केली. तिची मांडी सरकवली माझा लंड तिच्या मागून पुछित घातला. आई ग ...करताच मी उजव्या हाताने तिचे तोंड दाबले. ..उम्म्ह !! उम्म्ह !!! उम्म्ह !!..डावा हात कमरे खालून जोरात तिचे स्तन दाबू लागलो आणि मघुन धक्के. शेवटी मी जोर लावून तिच्या गंडी धक्का दिला.... मावशी एकदम हलकी झाली...ह्ह्ह!! ह्ह्ह!! करत दोघे श्वास घेऊ लागलो मी तिला एक चुंबन दिले. आणि दोघे झोपी गेलो.

दुसर्या दिवशी सगळ्याने नसता केला. कालचा प्रकार डोक्यात घोळत होता... माझे लक्ष मावशी काय बोलते. तिने आई आणि मला बाजूला घेतले. आईला बोली की, "रोहित फार स्ट्रेस मधेय आहे, त्याला रिलॅक्स होण्याची गरज आहे. पुडच्या वीक मधे त्याची IIT सक्रीनिंग आहे. तू त्याला माझ्या कडेह पटव." आई ने एक क्षणात होकार दिला. नंतर तिने मला एकट्याला रूम मधे बोलवले. माझ्या कडे बगत एक खणाखाली दिली. चित्रा मावशी बोली, " रोहित, मी समजू शकतेय, ह्या व्यात आकर्षण असतेय. पण सध्या तुला कॅरियर म्हत्वाचे आहे. लक्ष विचिलित होऊन चालनेर . तू कॅरियर कर , आणि लाइफमधेय तुला खूप सेक्स चे मोक्के मिळतील. पण कॅरियर चान्स एकदाच. तू माझ्या कडे चल. मी लक्ष देणार जातीपूरक की तू फक्त अभ्यास करणार." असे बोलून तिने मला मिठी मारली.-
चित्रा मावशी, IIT आणि Diwali-part 2
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गुबगुबीत स्वर्गाची सैर


अंगात आळस भरला होता. दुपारी घरी कोणीच नव्हते. मुलही शाळेला गेली होती. काय करायचं म्हणून मग झोपून टाकूया असा विचार डोक्यात आला. मग अंगावर चादर घेतली अन्ही झोपून टाकले.तिची स्थिती तशी केविलवाणी होती. नवरा मरून पाच - सहा वर्षे झाली होती. वैधव्याच जगन वाट्याला आल होत. परपुरुषाचा विचार मनात आनन सुधा पाप आहे. म्हणून नवऱ्यान बांधलेल्या वीस खोल्यांचं भाड यावरच सुखासमाधानाने दोन मुलांना वाढवीत होती. समाधान फक्त एकाच गोष्टीच नव्हत शरीरसुखाच. पण त्याला इलाज नव्हता. मनातून ती कितीही जळत असली तरी ती जगाला आपल दु:ख सांगत नव्हती. झोपून उठल्यावर काय करायचं म्हणून तिने हातावर तंबाखूची मिश्री घेतली आणि थोडा वेळ दोन घरापलीकाडच्या गोदाबाईशी मिश्री घासीत गप्पा मारत बसाव म्हणून ती घराबाहेर पडली. 
 
 
 
 
गोदाबाईच्या घराभोवती फळा फुलांची झाडे होती. तिथे जाऊन बसले कि जरा प्रसन्न वाटायचं. म्हणून शालू गोदाबाईकडे गेली. हाक मारण्याऐवजी दार ढकलून पाहिलं. 'एवढा वेळपर्यंत हि झोपून राहिली कि काय?' असा प्रश्न मनात आला. त्याचवेळी आतलं कुजबुजण कानावर पडल. कुणीतरी परपुरुषाचा आवाज कानावर पडला शालू एकदम चमकली. तिला जबरदस्त धक्का बसला. शालू पावलांचा आवाज न करता उजवीकडच्या भिंतीच्या खिडकीजवळ गेली. खिडकीची एक फळी उघडी होती. गोदाबाई त्याला मिठी मारून म्हणाली इखड कोण मरायला येतोय आणि आलो तरी बसायला आलो होतो अस सांगता येईल. मला सुधा गुबगुबीत स्वर्गाची सैर करावयाची होती.
तो आवाज आळीतल्या गावात रिकामे हिंडणाऱ्या जग्गूचा होता. बापजाद्यांनी भरपूर कमाई करून ठेवली होती. काम काहीच नव्हत खिसा भरलेला होता. चैन, मौजमजेत एकेक दिवस जात होता. शालूने त्या दोघांचे पूर्ण कामकाज बघितले होते. त्यामुळे शालूही आता चांगलीच तापली होती. घरी आली येताना तिच्यासमोर सोहमचा चेहरा आला सोहमची बायको मैना सतत आजारी असायची. दोघांशी अधून मधून तीच बोलन होत होत. शालू मनोमन खुश झाली. संध्याकाळपर्यंत लाखाचा खुट्टा तिच्या नजरेसमोरून गेला नाही. दुसरा दिवस उजाडला. ती पोरांना अंघोळ घालीत असतानाच अगदी आकाल्पितणपणे सोहम आला. त्याला पाहून शालू थक्क झाली. ती न्हानीतून म्हणाली बसा सोहमबाबू. आलेच. 
 
 
मग तिने पोरांना घाईघाईनेच अंघोळ घातली. त्यांची टॉवेलने अंग पुसली आणि सोहमजवळ बसून त्यांना कपडे घालता घालता विचारणा केली. वाहिनी थोडी अडचण होती.' सांगाना सोहमबाबू, मी काय परकी आहे काय तुम्हास. अस म्हणत शालू त्याच्या डोळ्यात डोळे टाकून बोलू लागली. थोडे पैसे पाहिजे होते. पगार झाला कि भाड्याबरोबर परत करीन. अहो मग एवढ काय तुम्ही माझे भाडेकरू असलात तरी घरच्यावानी समजते मी. असे म्हणून शालूने पटकन सोहमचा हातच हातात घेतला. शालूच्या मनात एक विचार आला. तिने त्याला रात्री जेवायला आपल्याकडेच या म्हणून सांगितले. रात्री सोहम शालूच्या घरी आला. मुल झोपली होती. शालूने त्याच्यासाठी मटणाच कालवण केल होत.दोघांनी जेवायला आरंभ केला. जेवण झाल्यानंतर अकरा वाजेपर्यंत ते गप्पा मारत बसले. शालूने, बायको नाहीतर येतेच थांबा कि, असा प्रेमळ आग्रह सोहमला करून पहिला सोहम हि एक पुरष होता. तो पटकन थांबला. शालू ने त्याला गादी टाकून दिली थोड्या अंतरावर तिने आपली गादी टाकली आणि ती झोपली. सोहमच धाडस होत नव्हत शेवटी नाईलाजाने शालूनेच धाडस करायचे ठरवले. शालू उठून त्याच्या गादीवर गेली आणि त्याच्या दांडूशी चाळे करीत ओढत म्हणाली, सोहमराव मी आलेय. जागे व्हा ना कोण वाहिनी तो मुद्दमच डोळे चोळत म्हणाला. सोहमने तिला पटकन आपल्या मिठीत घेतली. दोघांनी कपडे काढले. शालूने मांड्या तानवल्या. शालूपण आवेगाने त्याला भिडत म्हणाली, बसून करायचं होय?बसून करताना मजा येईल. 
 
 
हि चकाकती काकडी घुसळताना पाहता येईल. चांगलाच मोठा आहे हो तुमचा दांडू. तो बोंड वसत आनंदाने म्हणाली. रात्रभर आता झोपणारच नाही तो. फार दिवसांचा उपाशी आहे बिचारा. तिची योनी ताणून तिच्यात दांडू घुसवून सोहम म्हणाला. आवळा मला मी ढुंगण हलवते. आवळा आणखी. सगळ गेलय ना. शालू मग पुढ ढुंगण हलवू लागली. तिने त्याला तस मग पाठीवर झोपवल. तिचा कामाग्री पाणी प्यालेल्या दारूसारखा उधळला होता. त्याला धड पकडायला सांगून ती त्याच्या दांडूला घुसळू लागली. दांडूची जाडी चांगली असल्याने योनीच नाजूक कातड मानाजोग घासत होत. शालू सोहम स्वर्गाची सैर करीत होते. तीन मिनिटात शालूला घाम सुटला तरी ती ओठ घट्ट आवळून स्तंभन करीतच होती. सोहम दोन्ही हातानी तिचा एकेक घट्ट मस्तपैकी चोळीत होता. जगाचा त्यांना विसर पडला होता. आणि सोहम तिला रात्रभर ठोकत होता. सोहम चांगलाच खुश झाला होता. भरपूर दिवसांनी त्याला हे दिवस बघायला मिळाले होते. मला सुधा गुबगुबीत स्वर्गाची सैर करावयाची होती
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