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बारिश में भीगी साली को सेड्युस किया – पार्ट 2

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दोस्तों, ये मेरी sali ki chudai की कहानी का आखिरी भाग, मुझे यकीं है आप ये पूरी कहानी पढके बहुत बार मुठ मरी होगी और झड़ी होंगी| यही मेरा इनाम है, प्लीज कमेंट करके बताइए कि यह hindi sexy kahani कैसी लगी आपको..
पहले भाग का लिंक- बारिश में भीगी साली को सेड्युस किया – पार्ट 1
सपना अब पूरी तरह से गरम हो चुकी थी। उसके मन में कशमकश चल रही थी कि आगे बढ़े या नहीं। मैं जानता हूँ पहली बार की चुदाई से सभी डरतीं हैं। और वो तो अभी अनछुई कुँवारी कली थी। पर मेरा कार्यक्रम बिल्कुल सम्पूर्ण था। मेरे चुंगल से वो भला कैसे निकल सकती थी। उसने आँखें बन्द कर रखीं थीं।
फिर धीरे से बोली “बस एक बार ही देखना है और कोई शैतानी नहीं समझे?”
“ठीक है बस एक बार एक मिनट और २० सेकेण्ड के लिए, ओके, पक्का… प्रॉमिस… सच्ची…” मैंने अपने कान पकड़ लिए। उसकी हँसी निकल गई।
दोस्तों मेरे कार्यक्रम का तीसरा और अन्तिम चरण पूरा हो गया था। मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। कमोबेश यही हालत निसा की भी थी। उसने काँपती आवाज़ में कहा “अच्छा पहले लाईट बन्द करो, मुझे शर्म आती है।”
ओह… अँधेरे में क्या दिखाई देगा? और फिर वो जंगली बिल्ली आ गई तो?”
“ओह.. जीजू.. .तुम भी…” इस बार उसने एक नम्बर का बदमाश नहीं कहा। और फिर उसने आँखें बन्द किए हुए ही काँपते हाथों से अपना टॉप थोड़ा सा उठा दिया…
उफ्फ… सिन्दूरी आमों जैसे दो रस-कूप मेरे सामने थे। ऐरोला कोई कैरम की गोटी जितना गुलाबी रंग का। घुण्डियाँ बिल्कुल तने हुए चने के दाने जितने। मैं तो बस मंत्रमुग्ध हो देखता ही रह गया। मुझे लगा जैसे रिया ही मेरे सामने बैठी है। उसके रस-कूप रिया से थोड़े ही बड़े थे पर थोड़े से नीचे झुके, जबकि मुक्की के बिल्कुल सुडौल थे. मैंने एक हाथ से हौले से उन्हें छू दिया। उफ्फ… क्या मुलायम नाज़ुक रेशमी अहसास था। जैसे ही मैंने उनपर अपनी जीभ रखी तो निसा की एक मीठी सी सीत्कार निकल गई।
“ओह जीजू… केवल देखने की बात हुई थी… ओह… ओह… यहा… अब… बस करो… मुझे से नहीं रुका जाएगा…” मैंने एक अमृत कलश पर जीभ रख दी और उसे चूसना चालू कर दिया। सपना की सीत्कार अब भी चालू थी। “ओह… जी… जू…. मुझे क्या कर दिया तुमने… ओह.. चोदो मुझे… आह। हाआआयय्य्ययय… ऊईईईईईई… माँ…….. आआआहहहह… बस अब ओर नहीं, एक मिनट हो गया है” उसने मेरे सिर के बालों को अपने दोनों हाथों में ज़ोर से पकड़ लिया और अपनी छाती की ओर दबाने लगी। मैं कभी एक उरोज को चूसता, कभी दूसरे को। वो मस्त हुई आँखें बन्द किए मेरे बालों को ज़ोर से खींचती सीत्कार किए जा रही थी। इसी अवस्था में हम कोई ८-१० मिनट तो ज़रूर रहें होंगे। अचानक उसने मेरा सिर पकड़ कर ऊपर उठाया और मेरे होंठों को चूमने लगी, जैसे वो कई जन्मों की प्यासी थी। हम दोनों फ्रेंच किस्स करते रहे। फिर उसने मुझे नीचे ढकेल दिया और मेरे ऊपर लेट कर मेरे होंठ चूसने लगी। मेरा पप्पू तो अकड़ कर कुतुबमीनार बना पाजामे में अपना सिर फोड़ रहा था। मैं उसकी पीठ और नितम्बों पर हाथ फेर रहा था। क्या मुलायम दो ख़रबूज़े जैसे नितम्ब, कि किसी नामर्द का भी लंड खड़ा कर दे। मैंने उसकी गहरी होती खाई में अपनी उँगलियाँ फिरानी शुरु कर दी। उसकी चूत से रिसते कामरस से गीली उसकी चूत और गाँड का स्पर्श तो ऐसा था जैसे मैं स्वर्ग में ही पहुँच गया हूँ।
कोई ५ मिनट तक तो उसने मेरे होंठ चूसे ही होंगे। वैसे ही जैसे उस ब्लैक फॉक्स ने उस १५-१६ साल के लड़के के चूसे थे। फिर वो थोड़ी सी उठी और मेरे सीने पर ३-४ मुक्के लगा दिए। और बोली “जीजू तुमने आख़िर मुझे ख़राब कर ही दिया ना!”
मैंने धीरे से कहा “ख़राब नहीं प्यार करना सिखाया है”
“जीजू तुम एक नम्बर के बदमाश हो”
मैंने अपने मन में कहा ‘मेरी रानी मैं एक नम्बर का नहीं दो नम्बर का भी बदमाश हूँ, थोड़ी देर बाद पता चलेगा’ पर मैंने कहा “अरे छोड़ो इन बातों को जवानी के मज़ा लो, इस रात को यादगार रात बनाओ”
“नहीं जीजू, यह ठीक नहीं होगा। मैं अभी तक कुँवारी हूँ। मैंने पहले किसी के साथ कुछ नहीं किया। मुझे डर लग रहा है कोई गड़बड़ हो गई तो?”
“अरे मेरी रानी अब इतनी दूर आ ही गए हैं तो डर कैसा तुम तो बेकार डर रही हो, सभी मज़ा लेते हैं। इस जवानी को इतना क्यों दफ़ना रही हो। अपने मन और दिल से पूछो वो क्या कहता है।” मैंने अपना राम-बाण चला दिया। मैं जानता था वो पूरी तरह तैयार है पर पहली बार है इसलिए डर रही है। मन में हिचकिचाहट है। मेरे थोड़े से उकसावे पर वह चुदाई के लिए तैयार हो जाएगी। चूत और दिल इसके बस में अब कहाँ हैं, वो तो कब के मेरे हो चुके हैं। बस ये जो दिमाग में थोड़ा सा खलल है, मना कर रहा है। मेरी परियोजना का अन्तिम भाग सफलता पूर्वक पूरा हो गया था। अब तो बस उत्पाद का उदघाटन करना था।
मैंने उसका टॉप उतार दिया। दोनों क़बूतर आज़ाद हो गए। वो आँखें बन्द करके लेटी थी। होंठ काँप रहे थे। मैंने अभी तक उसकी चूत को हाथ भी नहीं लगाया था। आप तो जानते हैं मैं प्रेम गुरु हूँ और जल्दीबाज़ी में विश्वास नहीं रखता हूँ। मैं तो उसके मुँह से कहलवाना चाहता था कि ‘मुझे चोदो’। अब मैंने उसके होठों पर उसके होंठ रख दिए। उसके नरम नाज़ुक रसीले होठ नहीं जैसे शहद से भरी फूलों की पँखुड़ियाँ हों। मैंने उसे गालों पर, पलकों पर, माथे पर, गले पर, कान पर, दोनों उरोजों पर, और नाभी पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। वो आआहहह… उहहहह… करती जा रही थी। अपने पैर पटक रही थी। उसकी सीत्कार तेज़ होती जा रही थी। वो बोली “ये मुझे क्या होता जा रहा है…” वो रोमांच से काँप रही थी। मैं जानता था अब वह झड़ने वाली है। अरे वो तो बिल्कुल कच्ची कली ही निकली। उसका शरीर अकड़ा और उसने मेरे होंठ ही काट लिए। उसके नाखून मेरी पीठ पर चुभ रहे थे। उसने एक हल्की सी सिसकारी मारी। लगता है उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। फिर वह ठंडी पड़ गई।

परी कहना भी तौहीन है..
मैंने अपने कपड़े उतार दिए। सिर्फ चड्डी पहनी रखी। पप्पू महाराज ने अपना सिर चिपकी हुई चड्डी से भी बाहर निकाल ही लिया। उस बेचारे के क्या दोष था। अब सपना की बेल-बॉटम हटाने का वक्त आ गया था। सपना आँखें बन्द किए लेटी थी। मैंने उसकी सैलेक्स (सूती के पाजामे जैसी) के इलास्टिक को धीरे-धीरे नीचे करना शुरु किया। (उसने फिर बत्ती बन्द करने को कहा, तो मैंने कहा कि वो जंगली बिल्ली आ गई तो तुम्हारा दूध पी जाएगी और मैं भूखा ही रह जाऊँगा, रहने दो।) सपना ने अपने चूतड़ थोड़े से ऊपर कर दिए। प्यारे पाठकों, और पाठिकाओं ! अब तो स्वर्ग का द्वार बस एक दो इंच ही रह गया था। चूत का अनावरण होने ही वाला था। मेरा पप्पू तो ठुमके पर ठुमका लगा रहा था। उसने तीन-चार वीर्य की पहली बूँदें छोड़ ही दीं। वो तो इस स्वर्ग के द्वार के दर्शन के लिए कब से बेताब़ था।पहले छोटे-छोटे रेशमी बाल (उन्हें झाँट तो कतई नहीं कहा जा सकता) नज़र आए, और फिर किशमिश का दाना और फिर दो भागों में बँटी हुई उसकी नाज़ुक सी मक्खन मलाई सी चूत की फाँकें। गुलाबी रंगत लिए हुए। चूत के दोनों होठों पर हल्के-हल्के बाल। बीच में हल्की चॉकलेटी रंग की मोटी सी दरार। चीरे की लम्बाई ३ इंच से ज़्यादा बिल्कुल नहीं थी। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, ऊपर और नीचे के होंठों में रत्ती फर भी फ़र्क नहीं था। मोटे-मोटे गुलाबी रंग के संतरे की फाँके हों जैसे। दाईं जाँघ पर वो काला तिल। जैसे मेरे कत्ल का पूरा इन्तज़ाम किए हो। उसकी चूत काम-रस से सराबोर नीम गीली थी। मैंने अपने हाथों की दोनों उँगलियों से उसकी चूत की दोनों पंखुड़ियों को धीरे से चौड़ा किया। एक हल्की सी ‘पट’ की आवाज़ के साथ एक गहरा सा चीरा खुल गया।
उफ्फ.. सुर्ख लाल पकौड़े जैसी चूत एक दम गुलाबी रंग की थी। ऊपर अनार दाना, उसके नीचे मूत्र-छिद्र माचिस की तीली की नोक जितना बड़ा। आईला… और उसका फिंच… स्स्स्सी… का सिस्कारा तो कमाल का होगा। एक बार मूतते हुए ज़रूर चुम्मा लूँगा. मूत्र-छिद्र के ठीक एक इंच नीचे स्वर्ग-गुफ़ा का छोदा सा बन्द द्वार जिसमें से हल्का-हल्का सा सफेद पानी झर रहा था। मैंने अपनी जीभ जैसी ही उसकी मदन-मणि के दाने पर रखी तो उसकी एक सीत्कार निकल गई। मैंने जीभ को उसके मूत्र-छिद्र पर फिराया और फिर उसके स्वर्ग-द्वार पर। कच्चे नारियल, पेशाब और पसीने जैसी मादक सुगन्ध मेरे नथुनों में भर गई। कुछ मीठा, खट्टा, नमकीन सा स्वाद भला मैं कैसे नहीं पहचानता, जैसे रिया ही मेरे सामने लेटी हो। सपना तो अब किलकारियाँ मारने लगी थी। उसने अपने नितम्ब ऊपर-नीचे उठाते हुए अपनी चूत मेरे मुँह से चिपका दीं। मेरे सिर को दोनों हाथों से ज़ोर से पकड़ लिया और ज़ोर से बाल नोच लिए। इसमें उस बेचारी का क्या दोष। मुझे लगा अगर यही हालत रही तो मैं जल्दी ही गंजा हो जाऊँगा। पर अगर ऐसी चूत के लिए गंजा भी होना पड़े तो कोई ग़म नहीं।
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